शनिवार, 4 अप्रैल 2009

आमतौर पर अपने चिरंजिव या लाडली के लिये योग्य बहू या वर चुनाव की प्रक्रिया में जन्म कुन्डली मिलाना एक आवश्यक शर्त के रूप में भली भॉंति प्रतिष्ठित है । अनेक सम्बन्ध केवल इसी कारण से मूर्तरूप नहीं ले पाते । इस प्रक्रिया में मंगल का योगदान निश्चय ही बहुत बडा है । मंगल यदि दूषित है तो जातक का विवाह यदि असंभव नहीं तो अत्यंत कठिन अवश्य हो जाता है । लडकों के पिता तो इसकी विशेष चिन्ता नहीं करते परन्तु कन्या के माता पिता तो भयभीत ही हो जाते हैं जब उन्है यह ज्ञात होता है कि उनकी पुत्री की कुंडली में मंगली दोष है ।

सौर मंडल में ग्रहों के अनुक्रम में बृहस्पति के बाद मंगल का स्थान आता है । वह पृथ्वी से टूटकर अलग हो जाने के कारम आकार में छोटा है तथा कुज कहलाता है । इसका वर्ण अग्नि के समान चमकीला है । रंग लाल है । यह 686 दिन तथा 20 घंटों में राशि चक्र की एक परिक्रमा करता है । मंगल को पुरूष ग्रह माना गया है । यह युध्द का कारक है अत: इसका वर्ण क्षत्रीय है। दक्षिण दिशा मंगल की दिशा है क्योंकि यमराज के समान यह ग्रह भी जीव हानि कराता है । यह पाप ग्रह है । पाप फल देता है । मंगल सेनापति है । पुराणो में देवताओं के सेनापति शिवपुत्र कार्तिकेय माने जाते हैं अत: मंगल के देवता कार्तिकेय हैं ।

ज्योतिष विषयक ग्रंथ बृहत् ज्योतिषसार के ग्रंथकार ने मंगली दोष को परिभाषित करते हुए कहा है :

“लग्ने व्यये च पाताले चाष्टमे कुजे ।
पiत्न हन्ति स्वभर्तारं भतुर्भार्य न जीचित।।

एवं बिधे कुजे संख्ये विवाहो न कदाचन् ।
कार्यो वा गुणबाहुल्ये कुजे वा तादृशे दयो:”।।

यदि लडकी के जन्म लग्न में य बारहवें ्र सातवें ्र चौथे तथा आठवें मंगल हो तो पति का विनाश करे । इसी तरह यदि पति के जन्मलग्न आदि में मंगल हो तो स्त्री का विनाश करे अथार्त इन स्थानें में यदि मंगल हो तो कभी विवाह न करें अथवा बहुत गुण मिलें तो ही विवाह करे । दोनो मंगली हों तो भी विवाह शुभ होता है ।

उपरोक्त श्लेक व्दय में वर्णित मंगल की स्थिति का ्र शक्ति का हम विश्लेषण करें तो हमे निम्नानुसार परिणाम प्राप्त होते हैं :

मंगल अग्नि तत्व है । इसकी अशुभ स्थिति तथा अशुभ दृष्टि हिंसक और मारणात्मक प्रभाव उत्पन्न करती है । यह सत्य है ।

न्ौसर्गिक रूप से मंगल मेष और बृश्चिक राशि का स्वामी है तथा मेष के 12 अंश तक इसका मूल त्रिकोण है । मंगल अपने स्थान से चतुर्थ सप्तम और अष्टम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता है । मकर राशि में यह बलवान माना गया है । मकर उसकी उच्च राशि है और कर्क नीच राशि ।

जन्म लग्न में स्थित होकर मंगल की चतुर्थ दृष्टि गृहस्थी सुख को बहुत बिगाडती है । सप्तम दृष्टि वैवाहिक सुख और दाम्पत्य जीवन को नष्ट करती है । अष्टम भाव ्र जोकि सप्तम से iव्दतीय होने के कारण पति पiत्न दोनो के लिये मरक स्थान होता है ्र पर मंगल की अशुभ दृष्टि यमराज के कार्य को अंजाम देती है ।

जन्म लग्न से चतुर्थ भाव पर मंगल स्थित होकर सप्तम के साथ साथ कर्म के भाव दशम तथा आय भाव एकादश पर भी दृष्टि निक्षेप करता है । ज्योतिष के अधिकांश ग्रंथकार तथा पंडित इस बात पर एकमत हैं कि जिस जन्म कुंडली में च्तुर्थ भाव पर मंगल विराजमान होते हैं ्रअन्य समस्त ग्रहों का सामथ्र्य ़ उनकी शुभफल दातृव्य शक्ति सभी कुछ व्यर्थ हो जाता है और ंमंगल का केवल नाशकारी प्रभाव सर्वोपरी होता है ।

सप्तमस्त मंगल जातक को प्रबल मांगलिक बनाता है । यह स्थिति पति पiत्न दोनो के लिये अशुभ मानी गई है । ऐसे मंगल को “कांताघाती” नाम से अभिहित किया गया है ! सप्तमस्थ मंगल दशम भाव के साथ साथ लग्न तथा मरक भाव iव्दतीय पर पूर्ण दृष्टिपात करता है । यह स्थिति विनाश ़ विनाश और केवल विनाश का हेतु है ।

आठवें भाव पर मंगल की स्थिति सप्तम से iव्दतीय होने के कारण जातक के सहचर : पति या पiत्न : के लिये प्रबल मारकेश की होती है । अष्टम से मंगल की एकादश ़ iव्दतीय ़और तृतीय भाव पर पूर्ण दृष्टि रहती है । ऐसा जातक अल्पायु ़ धनहीन ़तथा निन्दा का पात्र होता है ।

मंगल की व्दादश भाव पर स्थिति जातक को अदार :पiत्न रहित : तथा अधम बनाता है । ऐसा मंगल iव्दतीय भाव के साथ षष्ठ और सप्तम पर पूर्ण दृष्टिपात करता है और जातक के लिये अपयशकारक ़ स्वास्थ्यहीन तथा सहचर के विनाश का कारण बन जाता है ।

भावदीपिका ग्रंथ के ग्रंथकार ने मंगल के iव्दतीय भाव की स्थिति को भी मंगलीदोष में गिना है । दूसरा भाव कुटुम्ब स्थान कहलाता है । इस भाव में बैठकर मंगल जातक को परिवारहीन बनाता है । iव्दतीयस्थ मंगल की दृष्टि पंचम ़अष्टम एवं नवम भाव पर पडती है । पंचम पुत्रभाव ़ अष्टम सहचर का मारक भाव ़तथा नवम भाग्य भाव है । iव्दतीय भाव का मंगल जातक को पुत्रहीन ़ अदार तथा भाग्यहीन बना देता है ।

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि मंगली दोष जातक के सहचर के लिये प्राणघातक होने के साथ साथ उसे भाग्यहीन ़ सुखपभोग से वंचित ़ अपयश का भागी ़ पुत्रहीन तथा रोगी आदि कई प्रकार से संतप्त करता है ।अत: उसके विषय में व्याप्त भय उचित ही लगता है ।


यदि हम मान भी लें कि मंगलीदोष की अशुभता को महत्व प्रदान करना आवश्यक है ़ तो कुछ एक योग ़अपवाद ऐसे भी हैं जिनमें मंगल की उपयुर्क्त स्थिति से अशुभता नहीं होती । ये योग निम्न हैं :

1़ यदि स्त्री और पुरूष दोनो की कुण्डलियों में मंगली दोष हो तो किसी अशुभ परिणाम की संभावना नहीं होती ।

2 ़यदि मंगल तुला या बृष राशि में चाहे किसी भी भाव में हो तो मंगलीदोष नहीं माना जाता ।

3 ़यदि मंगल iव्दतीय भाव में मिथुन या कन्या राशि में हो तो मंगली दोष नहीं होता क्येांकि मिथुन में बैठकर मंगल की दृष्टि अपने घर पर होगी । अपने घर को कोई नष्ट नहीं करता । दूसरे कन्या में iव्दतीय भाव में होने से मंगल चतुर्थ और नवम का स्वामी होकर योगकारक हो जाता है । अत्यंत शुभग्रह बन जाता है ।

4 ़ व्दादश भाव में यदि मंगल बृष या तुला राशि में होता है तो भी मंगली दोष नहीं माना जाता ़ क्योंकि बृष में होकर मंगल षष्ठ भाव की वृश्चिक राशि पर दृष्टिपात करेगा जो उसकी स्वराशि है । तुला का मंगल लग्नेश होने के कारण मंगल से अशुभ फल की आशा नहीं करनी चाहिये ।

5 ़ चतुर्थ भाव में मंगली दोष हो सकता है यदि मेष और बृश्चिक ़जे उसकी स्वराशियॅां हैं के अतिरिक्त कोई दूसरी राशि हो ।

6 ़ सप्तम में स्थित मंगल दोषपूर्ण होगा यदि उस भाव में मकर या कर्क राशि न हो ।

7 ़ यदि अष्टम में धनु या मीन राशि है तो भी मंगल का दोष नहीं व्यापता । इस स्थिति में मंगल योगकारक होकर अत्यंत शुभ ग्रह बन जाता है ।

8 ़ “ जामित्रे च यदा सौरिर्लग्ने वा हिबुकेतथा
नवमें व्दादशे चैव भौम दोषो न विद्यते”
लग्न ़ सप्तम ़चतुर्थ ़ नवम तथा बारहवें भाव में यदि शनिश्चर स्थित हों तो मंगली दोष नहीं होता ।

9 ़ पुरूय और स्त्री कुंडलियों में मंगल दोष की शक्ति से करना चाहिये ।

10 ़ मंगलदोष का कुप्रभाव शास्त्रानुसार उसकी शॉंति के उपाय करने से जाता रहता है ।

मंगलदोष की बिना उचित और आवश्यक जॉंच पडताल किये ़ मंगल के बलाबल को बिना परखे भयभीत होने का कोई कारण नहीं है ।